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हमारे रोचक ग्रन्थ - कौन है महाभारत का सर्वश्रेष्ठ योद्धा?


महाभारत, जैसा कि हम सब जानते हैं हमारे दिल और दिमाग में रचा बसा है और सदैव किसी ना किसी रूप में हमारा ध्यान आकर्षित करता रहा है | यह ग्रन्थ और इसके अंत में हुआ युद्ध दोनों की विशालता असाधारण है |

लोकप्रिय कथानक के अनुसार दोनों पक्षों की ओर से, सभी श्रेणियों के योद्धाओं को मिला कर इस युद्ध में भाग लेने वालों की संख्या लगभग ४० लाख के आसपास है | जब इतनी विशाल पृष्ठभूमि हो ,तो एक स्वाभाविक प्रश्न मन में आता है कि कौन है इन योद्धाओं में सर्वश्रेष्ठ? और यह प्रश्न आए भी क्यों ना....आखिर नायक हमारी मानसिकता का एक अभिन्न भाग जो रहे है..... क्या हम कथाओं को कहीं ना कहीं नायकों की गाथाओं के रूप में नहीं देखते?

हालाँकि सभी योद्धाओं की उनके कौशल और आयुधों के अनुरूप श्रेणियाँ होती हैं मगर कहीं ना कहीं धनुर्धारी अग्रणी प्रतीत होते हैं क्योंकि ना केवल वे अधिक दूर तक प्रहार कर सकते हैं, साथ ही अपने विविध अस्त्रों/शस्त्रों से एक ही प्रहार में अधिक संहार भी कर सकते हैं | उदाहरण के तौर पर जिस प्रकार अर्जुन ने एक ही प्रहार से ना केवल जयद्रथ का वध किया, अपितु उनके कटे हुए मस्तक का एक सुदूर स्थान पर प्रेषण भी किया | इसी प्रकार सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं कि दौड़ में भीष्म,अर्जुन,कर्ण आदि अन्य योद्धाओं से प्रबल दावेदार प्रतीत होते हैं| परन्तु इन सब में से आखिर कौन है सर्वश्रेष्ठ?

जब भी महाभारत के नायकों का वर्णन आता है तब कर्ण का विशेष उल्लेख रहा है.....पाठकों और विचारकों का एक पूरा समूह है जो कहीं ना कहीं विजयी नायकों की तुलना में दुखांत नायकों का अधिक गुणगान करता है | कर्ण उन समस्त पाठकों के पसंदीदा चरित्र रहे हैं| (कर्ण पर अधिक विस्तार से चर्चा एक अलग लेख में करेंगे) 

चलिए जानने का प्रयास करते है कौन है सर्वश्रेष्ठ? साथ ही एक और प्रश्न पर गौर करेंगे कि सर्वश्रेष्ठता के मायने क्या हैं एवं यह प्रश्न कहा तक उचित है?
मनन करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि यह प्रश्न ही अर्थहीन है | मेरे अनुसार इसके मुख्यतया २ कारण हैं -
१) सभी चरित्रों को गौरवान्वित किया गया है या उनको महिमा मंडित किया गया है ऐसा प्रतीत होता है |
२) जीत या हार सिर्फ श्रेष्ठता पर निर्भर नहीं है और कहीं ना कहीं यहाँ पर सापेक्षता भी है | कुछ भी पूर्ण या परम नहीं है......सब कुछ सापेक्ष है |

कथानक और युद्ध में कई ऐसे वाकये हैं जिन पर गौर करने पर महसूस होता है कि लगभग सभी चरित्रों का एवं युद्ध का महिमागान किया गया है| चूँकि महाभारत ऐसा युद्ध नहीं था जिसको कोई कम आंके तो जाहिर सी बात है कि हर योद्धा उस समय अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन करना चाहेगा....मगर हर योद्धा का एक ऐसा दिन आता है जब उसे आभास होता है कि जो है बस यही है.....और उस दिन योद्धा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देखने को मिलता है|
कई बार ऐसा भी देखा गया है कि युद्ध की शुरुआत में कमज़ोर लगने वाला योद्धा अंत में भारी पड़ता है |

आइये एक-एक करके कुछ योद्धाओं के बारे में जानते हैं जब उन्होंने अपना श्रेष्ठ युद्ध कौशल प्रदर्शित किया |
  • अभिमन्यु
    ऐसा कहा जाता है कि उम्र में सबसे छोटे इस महावीर योद्धा ने महामहिम भीष्म तक के साथ युद्ध किया| अभिमन्यु भीष्म को मुश्किल में तो नहीं डाल पाए मगर उन्होंने भीष्म का सम्मान अवश्य जीता | अभिमन्यु ने अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन चक्रव्यूह भेदन वाले दिन किया| उन्होंने द्रोण,कर्ण,कृपाचार्य जैसे महायोद्धाओं के साथ इतना भीषण युद्ध किया कि सभी दिग्गजों को मिलकर, नियम के विरुद्ध जाकर उनका वध करना पड़ा| इस घटनाक्रम में कदाचित अभिमन्यु को महिमामण्डित किया गया है क्योंकि अभिमन्यु ने लगभग २ सप्ताह तक युद्ध किया मगर उनकी वीरता का कोई समकक्ष वर्णन सुनने मे नहीं आता | अभिमन्यु ही नहीं, वरन अन्य योद्धाओं के बारे में भी कुछ खास सुनने में नहीं आता जब तक भीष्म थे| युद्ध के शुरूआती ९ दिन लगभग भीष्म के ही नाम रहे |
  • घटोत्कच
    घटोत्कच की अगर बात करें तो उन्होंने अपनी वीरता का परचम उस दिन फहराया जब युद्ध में जयद्रथ की मृत्यु के पश्चात् उनका आगमन हुआ | उन्होंने विपक्षी दल में भीषण संहार किया | घटोत्कच के बारे में ये तर्क दिया जाता है की वो एक राक्षस थे.....परन्तु क्या द्रोण,कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा जैसे महायोद्धाओं से सुसज्जित समूची कौरव सेना के सम्मिलित शस्त्रागार में भी ऐसा कोई अस्त्र/शस्त्र नहीं था तो घटोत्कच का वध कर सके सिवाय उस शक्ति के जो कर्ण को इंद्र भगवन से प्राप्त हुई थी?
    क्या यह घटनाक्रम घटोत्कच का यशोगान है? या फिर द्रोण, कर्ण आदि महावीरों की अपराजेयता पर बड़ी सूक्ष्मता से किया गया प्रश्न? या फिर इंद्र भगवान की कर्ण को दी हुई शक्ति से अर्जुन को बचाने का प्रयत्न?
  • अर्जुन
    अर्जुन के संदर्भ में कई ऐसे किस्से सुनने को मिलते हैं जहाँ पर उन्होंने अदम्य वीरता का परिचय दिया | मेरे विचार में फिर भी उनका श्रेष्ठ दिन जयद्रथ वध वाला है क्योंकि आचार्य द्रोण ने कमल व्यूह की रचना की थी और अर्जुन को एक-एक योद्धा का सामना कर अपने लक्ष्य तक पहुँचना था जिनमे कर्ण भी शामिल थे| हालाँकि अर्जुन जयद्रथ तक समय पर नहीं पहुँच पाए थे, परन्तु जो पराक्रम उन्होंने दिखाया वह असामान्य था| कदाचित यहाँ पर अर्जुन का यशोगान किया गया है | साथ ही एक बार फिर कर्ण के अपराजित होने पर प्रश्न उठता है | और एक प्रश्न यह भी उठता है कि उस समय कर्ण ने इंद्र भगवान की दी हुई शक्ति का प्रयोग क्यों नहीं किया?
  • कर्ण
    बात करें कर्ण की तो कर्ण का श्रेष्ठ प्रदर्शन युद्ध के १६-१७ वे दिन देखने को मिलता है जब अर्जुन के साथ उनका निर्णायक युद्ध हुआ | वह युद्ध जिसका कर्ण ने जीवन पर्यन्त इंतज़ार किया | कहते हैं कि उस दिन कर्ण ने ऐसा पराक्रम दिखाया कि स्वयं भगवान कृष्ण भी चिंतित हो गए | जीतना तो दूर,अर्जुन के लिए अपने प्राणों की रक्षा करना तक मुश्किल हो गया था | तो उस दिन ऐसा क्या हुआ कि कर्ण अर्जुन पर इतना भारी पड़े जबकि इसके पूर्व अर्जुन कर्ण पर एक से अधिक बार भारी पड़ चुके थे और अभिमन्यु तथा घटोत्कच भी युद्ध में कर्ण को मुश्किल में डाल चुके थे? यहाँ कदाचित कर्ण को महिमामण्डित किया गया है |  
  • द्रोणाचार्य
    युद्ध में सेनापति बनने के पश्चात् द्रोणाचार्य ने पाण्डव सेना में हाहाकार मचा दिया और भीषण संहार किया | उनका सामना करना पांडवों के लिए असंभव हो गया था | यहाँ द्रोण को महिमामण्डित किया गया है | एक ओर जिस प्रकार कर्ण,द्रोण,भीष्म आदि योद्धाओं का वध बल के स्थान पर कूटनीति से किया गया, वह इन योद्धाओं को "अपराजेय" की उपाधि दिलाता है, वहीँ दूसरी ओर अभिमन्यु और घटोत्कच के पराक्रम के घटनाक्रम समस्त कौरव सेना के अपराजेय होने पर एक सूक्ष्म प्रश्न खड़ा करते हैं | प्रश्न इसलिए भी उठता है की जहाँ एक ओर समूची कौरव सेना के दिग्गजों का पराक्रम सर्वज्ञात था, वहीं दूसरी ओर घटोत्कच तथा अभिमन्यु के पराक्रम के बारे में युद्ध से पहले कुछ खास कहा-सुना नहीं गया था |
  • भीष्म
    महामहिम भीष्म के पराक्रम का श्रेष्ठ दिन वो प्रतीत होता है जब उन्होंने देवी अम्बा वाले घटनाक्रम में अपने गुरु भगवान परशुराम को पराजित किया | एक ओर जहाँ यह घटनाक्रम भीष्म का महिमागान प्रतीत होता है वहीँ भगवान परशुराम जी की महिमा का क्षय भी प्रतीत होता है क्योंकि भीष्म से लड़ने के पहले भगवान परशुराम असंख्य क्षत्रियों का संहार कर चुके थे जिनमे कार्तवीर्य अर्जुन भी थे, जिन्होंने रावण तक को परास्त कर दिया था !
अगर भीष्म समस्त योद्धाओं में सर्वोपरि हैं तो फिर किस प्रकार अर्जुन विराट युद्ध में भीष्म सहित समूची कौरव सेना पर भारी पड़े और वह भी अकेले?
अब अगर अर्जुन श्रेष्ठतम योद्धा हैं, तो फिर किस प्रकार युद्ध के उपरांत एक अन्य अवसर पर वभ्रुवाहन अर्जुन पर भारी पड़े?

इस समय समीकरण इस प्रकार है -
  • विजेताओं के विजेता,ग्रहों तक को बंदी बना लेते हैं महापराक्रमी महाबली रावण
  • परन्तु रावण को परास्त करते हैं कार्तवीर्य अर्जुन
  • कार्तवीर्य अर्जुन का संहार करते हैं परशुराम
  • परशुरम को पराजित करते हैं भीष्म
  • विराट युद्ध में भीष्म सहित सारी कौरव सेना पर भारी पड़ते हैं अकेले अर्जुन
  • और अर्जुन पराजित होते हैं वभ्रुवाहन के हाथों !!
असल प्रश्न पर वापस आते हुए अब अगर तुलना करें तो उक्त घटनाक्रमों से उस सापेक्षता की झलक मिलती है जिसकी बात मैंने लेख के आरम्भ में करी | यह बिलकुल एक खेल प्रतियोगिता कि तरह प्रतीत होता है जब मान लीजिए कोई एक समूह "क", समूह "ख" को हराता है, समूह "ख" समूह "ग" को हराता है मगर किसी निर्णायक दिन समूह "ग" अजय लगने वाले समूह "क" को हरा देता है....!!
अपने व्यक्तिगत अध्ययन और विचार के अनुसार मैंने यहाँ पर केवल कुछ ही घटनाक्रमों पर चर्चा की जिन्हे मैंने निर्णायक पाया | समूचा ग्रन्थ और भी अनेक महायोद्धाओं जैसे कि धृष्‍टद्‍युम्‍न,सात्यकि, बर्बरीक आदि के पराक्रम के घटनाक्रमों से भरा पड़ा है |

एक श्रेणी के योद्धा उन कारणों से एक दूसरे पर भरी पड़ते हैं जो या तो परिस्थितिजन्य प्रतीत होते हैं या मनुष्यों से परे किसी दिव्य योजना का एक हिस्सा |


इसी प्रकार एक और प्रश्न कई बार यह उठता है कि युद्ध में सबसे अधिक पीड़ादायक मृत्यु किसकी हुई थी?
क्या वो भीष्म थे जिन्होंने बाणों से छिद्रित देह के साथ बाणशैया पर अनेकों सप्ताह व्यतीत किये? 
या वो अभिमन्यु थे जिनका निर्ममता से वध किया गया?
या वो दुर्योधन थे जिन्होंने मरणासन्न स्थिति में भी पांडवों की मृत्यु का समाचार मिलने तक प्राण नहीं त्यागे थे ?
या वो उन असंख्य सैनिकों में से कोई एक जिनके नाम तक कोई नहीं जनता?

ऐसे प्रश्नों का कोई निश्चित उत्तर ही नहीं है क्योंकि प्रश्न स्वयं ही धुंधले हैं | 

कुल-मिलाकर सारांश ये निकलता है कि सभी चरित्र एक श्रंखला की कड़ियों कि तरह प्रतीत होते हैं (या चित्र-खंड पहेली के खंडों की तरह) जिनका महत्व तभी है जब इन सब को एक साथ जोड़ कर पूर्ण श्रंखला के रूप में देखा जाये | अलग-अलग देखने पर, इनका कोई आकर और अर्थ नहीं है |
इनमें से हर एक, ना तो किसी से बढ़कर हैं ना किसी से कम...अपितु, ये सब ही आवश्यक हैं | श्रेष्ठता का प्रश्न ही अर्थहीन है | तुलना व्यर्थ है |
 


आशा है आपको यह लेख विचारणीय लगा होगा | अपने विचार जरूर बताएं और यदि आपको उक्त द्रष्टिकोण अच्छा लगा हो तो इसी अधिक से अधिक लोगों तक अवश्य पहुचाएं | जुड़े रहिये "हमारे रोचक ग्रंथ" की इस श्रृंखला में जिसमे हम और भी कईं दिलचस्प विषयों पर चर्चा करेंगे।  

ईश्वर का अभिनंदन और आभार || 

इसी लेख को अंग्रेज़ी में यहाँ पढ़े -
https://bit.ly/2Uq25aj
(विचार व्यक्तिगत हैं था किसी प्रकार की निंदा चेष्टित नहीं है)

Comments

  1. What an amazing read bro!!!!! Kudos on wonderful compilation in the end mentioning Ravan till Arjun and Vrabhuvahan.... It makes me ponder probably its the TIME which is the HERO in mahabharata and each yug (era), as each individual has a different journey path which they traverse with TIME and enjoy their share of glories and tragedies.... Proud of you and seeing you succeed as a writer in various forms. GOD BLESS YOU

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