स्वागत है आपका "हमारे रोचक ग्रंथ" श्रृंखला के इस अगले लेख में जिसका शीर्षक है - कर्ण। आरंभ करने के पूर्व अपनी द्रष्टता स्वीकारना चाहता हूँ जाने-अनजाने में ऐसे महान चरित्रों पर टीका टिप्पणी करने के लिए| आख़िर वे वो महानायक हैं जिनका हम आज भी आदर करते हैं और मैं, मात्र एक अनामंत्रित विश्लेषक| जैसा की मैंने अपने पिछले लेख ( https://bit.ly/2kwrwcE ) में भी उल्लेख किया था, कि पाठकों का एक समूह दुखांत नायकों का गुणगान करता रहा है और कर्ण उन सभी के पसंदीदा चरित्र रहे हैं | लेखिका इरावती कर्वे अपनी पुस्तक "युगांता" में बड़े सुंदर शब्दों में लिखती हैं(अंग्रेजी में) कि " हालाँकि महाभारत में सभी चरित्रों की परीक्षा ली गई, मगर कोई जीवन से इतना पराजित प्रतीत नहीं हुआ जितना पराजित कर्ण प्रतीत हुए | अपने अपने विचारानुसार, इसे प्रशंसा भी माना जा सकता है और टिप्पणी भी| तो आइये जानने का प्रयास करते हैं कि क्या कारण रहे जिन्होंने कर्ण जैसे नायक को एक दुखांत नायक बनाया| द्रश्य है रंगभूमि का जहाँ समस्त कुरु राजकुमार अपनी शिक्षा पूर्ण कर अपना कौशल प्रदर्शन कर रहे हैं| इसी समय ...
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