शिकायत बड़ी है, शब्दों से मुझे…
कि भावनाओं का वो अविरल वेग,
क्या भला चंद लफ़्ज़ों में सिमटता है?
अनगिनत लहरों का शोर,
क्या भला एक किनारे में समाता है?
कुछ तो बुद्धू बना दिया विज्ञान ने
यूँ परिभाषाएँ देकर हमें, वरना...
धरती का आकार, क्या भला एक पंक्ति में कहा जाता है?
इधर तो जज़्बातों का सैलाब उमड़ता है,
और उधर, व्याकरण का वाक्य ख़त्म हो जाता है!
मन में आने और गुजर जाने वाले अनगिनत विचारों का कच्चा चिट्ठा,
क्या भला कुछ सौ पन्नों में समाहित होता है?
कहते हैं समझदार को इशारा काफी होता है,
पर क्या सारा ज़माना एक समान सयाना होता है?
बैचेन बड़ा है ये दिल हमारा,
कि भावनाओं की लहरों की मचलन,
अब व्यक्त कैसे करूँ मैं?
योजन से भी कोटि कोटि ज़्यादा रिश्तों की उन गहराईयों,
को चंद शब्दों में बयां कैसे करूं मैं?
शब्दकोष ने भी एक शब्द बता कर पल्ला झाड़ लिया अपना,
अब उस एक शब्द "अनंत" से भी क्या अपेक्षा,
और क्या शिकायत करूं मैं?
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